पंच प्रयाग (Panch Prayag Map)

भारत के उत्तराखंड राज्य को ‘देवभूमि’ कहा जाता है, जहां प्राचीन तीर्थस्थल, हिमालय की ऊंचाइयां और पवित्र नदियां श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। यहां स्थित पंच प्रयाग (Panch Prayag) हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखते हैं। प्रयाग शब्द का संस्कृत भाषा में अर्थ ‘नदियों का संगम स्थल’ है। उत्तराखंड के पंच प्रयाग अलकनंदा नदी के साथ पांच पवित्र नदियों के संगम स्थल है। यदि हम अलकनंदा नदी की प्रवाह यात्रा को समझ लें तो हम इन पांचो प्रयागों का निर्माण कैसे होता है यह भी समझ लेंगे। आईए अब हम मैप की सहायता से पंच प्रयाग (Panch Prayag) और उनसे संबंधित नदियों को विस्तार से समझते हैं।

Panch Prayag map ( पंच प्रयाग मानचित्र)
पंच प्रयाग मानचित्र (Panch Prayag map)

 

अलकनंदा नदी की प्रवाह यात्रा और पंच प्रयाग का निर्माण

अलकनंदा नदी उत्तराखंड की प्रमुख नदियों में से एक है और इसका पौराणिक, धार्मिक और भौगोलिक महत्व अत्यधिक है। यह गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है और हिमालय की गोद से निकलकर कई धार्मिक स्थलों और प्रयागों से होकर गुजरती है।

  • अलकनंदा नदी का उद्गम उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित सतोपंथ ग्लेशियर से होता है। उद्गम के बाद यह नदी दक्षिण-पूर्व दिशा में बहते हुए बद्रीनाथ से होकर गुजरती है।
  • कुछ स्रोतों के अनुसार, अलकनंदा नदी का उद्गम विष्णु गंगा नदी के नाम से होता है, और जब यह धौली गंगा नदी से संगम करती है, तो इसे अलकनंदा कहा जाता है। हालांकि, मेरे द्वारा कई विश्वसनीय स्रोतों और गूगल मैप की मदद से इस तथ्य की जांच की गई, जिसमें पाया गया कि अधिकतर स्थानों पर इसे प्रारंभ से ही अलकनंदा नदी के रूप में उल्लेखित किया गया है, जबकि विष्णु गंगा का नाम प्रमुख रूप से सामने नहीं आया।
  • अलकनंदा नदी तट स्थित बद्रीनाथ आदिगुरु शंकराचार्य के द्वारा स्थापित हिंदू धर्म के चार पवित्र धामों में से एक है। यह चारों धाम चारों दिशाओं में स्थित है। (1) बद्रीनाथ (उत्तराखंड) (2) द्वारका (गुजरात)(3) रामेश्वरम (तमिलनाडु) (4) पुरी (उड़ीसा)
  • बद्रीनाथ भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे विष्णु भगवान के निवास स्थान के रूप में पूजा जाता है।
  • उत्तराखंड और तिब्बत सीमा पर स्थित नीति दर्रे और कमेत पर्वत चोटी के पास से निकालकर आने वाली धौलीगंगा नदी जोशीमठ के पास अलकनंदा नदी से मिलती है। अलकनंदा नदी और धौली गंगा नदी के संगम स्थल को विष्णु प्रयाग कहा जाता है।
  • विष्णु प्रयाग में धौली गंगा नदी के साथ संगम के बाद अलकनंदा नदी पश्चिम की ओर मुडती है और दक्षिण पश्चिम दिशा में बहते हुए आगे बढ़ती है। आगे चलकर नंदादेवी चोटी के पास से निकलकर आने वाली नंदाकिनी नदी नंदप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलती है। अलकनंदा नदी और नंदाकिनी नदी के संगम स्थल को ही नंदप्रयाग कहा जाता है।
  • इसके आगे पिंडारी ग्लेशियर से निकलकर आने वाली पिंडर (कर्णगंगा नदी) कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी से आकर मिलती है। अलकनंदा नदी और पिंडर नदी के संगम स्थल को ही कर्णप्रयाग कहा जाता है।
  • कर्णप्रयाग के बाद अलकनंदा नदी पश्चिम दिशा में बहते हुए आगे बढ़ती है। केदारनाथ के पास स्थित चौराबारी ग्लेशियर से निकालकर आने वाली मंदाकिनी नदी रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलती है। अलकनंदा नदी और मंदाकिनी नदी के संगम स्थल को रुद्रप्रयाग कहा जाता है।
  • रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी नदी के साथ संगम के बाद अलकनंदा नदी दक्षिण पश्चिम दिशा में बहते हुए आगे बढ़ती है और देवप्रयाग पहुंचती है। देवप्रयाग में अलकनंदा नदी गंगोत्री ग्लेशियर के गोमुख से निकलकर आने वाली भागीरथी नदी मे मिल जाती है। अलकनंदा नदी और भागीरथी नदी के संगम स्थल को देवप्रयाग कहा जाता है।

पंच प्रयाग (Panch Prayag)

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विष्णु प्रयाग

विष्णु प्रयाग उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा और धौलीगंगा नदी के संगम पर स्थित है। विष्णु प्रयाग उत्तराखंड के पंच प्रयाग में सबसे पहला प्रयाग है।

इस स्थान का नाम भगवान विष्णु के नाम पर रखा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद ऋषि ने यहां तपस्या की थी और भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए थे इसलिए इस स्थल को भगवान विष्णु की पूजा के लिए पवित्र माना जाता है। विष्णु प्रयाग जोशीमठ से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

विष्णु प्रयाग- अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों का संगम
विष्णु प्रयाग- अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों का संगम

जोशीमठ (ज्योतिर्मठ)

जोशीमठ उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक प्रमुख तीर्थ और पर्यटन स्थल है। जोशीमठ न केवल बद्रीनाथ धाम का प्रवेश द्वार है, बल्कि यह चारधाम यात्रा और हिमालयी पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र भी है। 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने यहाँ शंकराचार्य मठ (ज्योतिर्मठ) की स्थापना की थी। यह शंकराचार्य के चार प्रमुख मठों में से एक है और उत्तर भारत का आध्यात्मिक केंद्र है। यह भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह को समर्पित है। मान्यता है कि यह मंदिर बद्रीनाथ के मंदिर से जुड़ा है। जब बद्रीनाथ मंदिर में पूजा संभव नहीं होती, तब यहाँ पूजा की जाती है।

धौलीगंगा नदी

धौलीगंगा नदी उत्तराखंड और तिब्बत सीमा पर स्थित नीति दर्रे और कमेत पर्वत चोटी के पास से निकलती है और विष्णु प्रयाग में आकर अलकनंदा नदी से मिलती है।

इसकी प्रमुख सहायक नदी ऋषि गंगा नदी है जो नंदादेवी ग्लेशियर से निकलती है और नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान के बीच से होकर बहती है। ऋषि गंगा नदी और धौली गंगा नदी का संगम उत्तराखंड के चमोली जिले में रैणी गांव के पास होता है।

नंदप्रयाग

नंदप्रयाग उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में ही अलकनंदा और नंदाकिनी नदियों के संगम पर स्थित है। पंच प्रयागों में यह दूसरा प्रयाग है। यह ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-7) पर स्थित है और बद्रीनाथ धाम की यात्रा के मार्ग पर पड़ता है।

नंदप्रयाग का नाम नंदा देवी और प्रयाग (संगम) के नाम पर पड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह स्थान राजा नंद के नाम पर प्रसिद्ध है, जिन्होंने यहां एक यज्ञ किया था। नंदप्रयाग प्राचीन समय से व्यापार और तीर्थयात्रा का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।

नंदप्रयाग- अलकनंदा और नंदाकिनी नदियों का संगम
नंदप्रयाग- अलकनंदा और नंदाकिनी नदियों का संगम

नंदाकिनी नदी

नंदाकिनी नदी का उद्गम नंदा घुंटी चोटी के पश्चिमी किनारे से होता है। उद्गम के पश्चात यह नदी पश्चिम दिशा में बहते हुए नंदप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिल जाती है। अलकनंदा नदी और नंदाकिनी नदी के संगम स्थल को ही नंदप्रयाग कहा जाता है।

कर्णप्रयाग

कर्णप्रयाग उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में ही अलकनंदा नदी और पिंडर नदी (कर्णगंगा) के संगम पर स्थित है। पांच प्रयागों में यह तीसरा प्रयाग है। यह ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-7) पर स्थित है।

कर्णप्रयाग उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है और चारों ओर हिमालय की सुंदर पहाड़ियों और हरियाली से घिरा हुआ है।

कर्णप्रयाग का नाम महाभारत के महान योद्धा कर्ण के नाम पर पड़ा है। ऐसा माना जाता है कि यहां कर्ण ने सूर्य भगवान की तपस्या की थी और उन्हें अपना दिव्य कवच और कुंडल प्राप्त हुआ था। कर्णप्रयाग मे भगवान शिव की पत्नी देवी उमा (पार्वती) को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है।

कर्णप्रयाग- अलकनंदा और पिंडर नदियों का संगम
कर्णप्रयाग- अलकनंदा और पिंडर नदियों का संगम

पिंडर नदी

पिंडर नदी उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले के पिंडारी ग्लेशियर से निकलती है। पिंडर नदी पिंडारी ग्लेशियर से निकलने के बाद बागेश्वर और चमोली जिलों से होकर गुजरती है और और चमोली जिले में ही कार्णप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिल जाती है।

रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग भारत के उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम स्थल पर स्थित है।

रुद्रप्रयाग का नाम भगवान शिव के रूद्र रूप से जुड़ा हुआ है। रुद्रप्रयाग की पौराणिक कथा के अनुसार, इस पवित्र स्थान पर महर्षि नारद ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। कहा जाता है कि नारद मुनि ने एक पांव पर खड़े होकर भगवान शिव की उपासना की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने रौद्र रूप में दर्शन दिए। भगवान शिव ने नारद मुनि को संगीत की गूढ़ शिक्षा प्रदान की और पुरुस्कारस्वरूप उन्हें एक दिव्य वीणा भेंट की। इस स्थान को “रुद्रप्रयाग” नाम मिलने का कारण भगवान शिव के रौद्र स्वरूप का प्रकट होना माना जाता है।

रुद्रप्रयाग- अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों का संगम
रुद्रप्रयाग- अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों का संगम

मंदाकिनी नदी

मंदाकिनी नदी का उद्गम केदारनाथ धाम के पास स्थित चौराबारी ग्लेशियर से होता है। चौराबाड़ी ताल (गांधी सरोवर) से निकलकर यह केदारनाथ मंदिर के समीप बहती है और गौरीकुंड, अगस्त्यमुनि, और गुप्तकाशी जैसे तीर्थ स्थलों से होकर गुजरती है। रुद्रप्रयाग में यह नदी अलकनंदा नदी से मिल जाती है।

मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित केदारनाथ मंदिर, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां आकर नदी का धार्मिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

देवप्रयाग

देवप्रयाग उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले में अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम स्थल पर स्थित एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह उत्तराखंड के पंच प्रयाग में पांचवें और अंतिम प्रयाग के रूप में प्रसिद्ध है।

देवप्रयाग में ही अलकनंदा नदी और भागीरथी नदी का संगम होने से गंगा नदी का उद्गम होता है। इस स्थान को ‘गंगा का जन्म स्थान’ भी कहा जाता है।

देवप्रयाग- अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम
देवप्रयाग- अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा भगीरथ ने भगवान शिव से अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना की तो शिव जी ने अपनी जटाओं से गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर भेजा। कहा जाता है की गंगा के साथ स्वर्ग से 33 करोड़ देवी देवता भी पृथ्वी पर आए और उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग को बनाया।

देवप्रयाग शहर का प्रमुख मंदिर रघुनाथ जी मंदिर है और यह भगवान राम को समर्पित है। यही पर चंद्रबदनी मंदिर भी स्थित है जो देवी सती के शक्तिपीठों में से एक है।

उत्तराखंड की लोक कथाओं में भागीरथी नदी को सास का दर्जा दिया गया है और अलकनंदा नदी को बहू का दर्जा दिया गया है। क्योंकि भागीरथी नदी बहुत उथल-पुथल के साथ बहती है और अलकनंदा बड़ी शांति से बहती है।

भागीरथी नदी

भागीरथी नदी का उद्गम उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री ग्लेशियर के गोमुख से होता है। उत्तराखंड में 205 किलोमीटर बहने के बाद देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा नदी का संगम होता है जहां से यह नदी गंगा नदी के रूप में जानी जाती है।

जाडगंगा / जाह्नवी तथा भीलांगना नदियां भागीरथी नदी की प्रमुख सहायक नदियां हैं। भिलांगना नदी का उद्गम खतलिंग ग्लेशियर से होता है और यह गणेशप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलती है । भागीरथी और भीलांगना नदियों के संगम पर टिहरी बांध बनाया गया। अब यह संगम टिहरी बांध के कारण डूब चुका है।

टिहरी बांध भारत का सबसे ऊंचा बांध है पर भारत का सबसे ऊंचा गुरुत्वीय बांध भाखड़ा नांगल बांध है। बांध और बांधों के प्रकारों को हम बांध (Dams) वाले टॉपिक में विस्तार से समझेंगे।

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