ब्रह्मपुत्र नदी एशिया की प्रमुख नदियों में से एक है जो अपनी विशाल जलधारा, अद्वितीय प्रवाह मार्ग और सांस्कृतिक-आर्थिक महत्व के लिए जानी जाती है। ब्रह्मपुत्र का मार्ग केवल भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिकी, परिवहन, कृषि और जल विद्युत उत्पादन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस आर्टिकल में हम ब्रह्मपुत्र नदी का विस्तृत मानचित्र (Brahmaputra River Map) , इसके उद्गम स्थल, प्रवाह मार्ग, प्रमुख सहायक नदियां और इसके सांस्कृतिक-आर्थिक महत्व की गहन जानकारी प्रस्तुत करेंगे, ताकि सभी पाठक इस महान नदी की संपूर्ण भौगोलिक एवं ऐतिहासिक तस्वीर समझ सकें।
ब्रह्मपुत्र नदी का सामान्य परिचय
- ब्रह्मपुत्र नदी एशिया की सबसे महत्वपूर्ण और विश्व की प्रमुख नदियों में से एक है। इसकी कुल लंबाई लगभग 2900 किलोमीटर है और यह नदी जल विसर्जन के कुल आयतन की दृष्टि से यह विश्व की चार सबसे बड़ी नदियों में शामिल होती है।
- ब्रह्मपुत्र नदी एक अंतरराष्ट्रीय नदी है, जो 3 देशों तिब्बत (चीन), भारत और बांग्लादेश में प्रवाहित होती है। तिब्बत में इसकी लंबाई लगभग 1625 किलोमीटर, भारत में 916 किलोमीटर तथा बांग्लादेश में 337 किलोमीटर है।
- ब्रह्मपुत्र नदी का जल ग्रहण क्षेत्र लगभग 580000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह क्षेत्र चार देशों में विभाजित है – चीन (50.5%), भारत (33.6%), बांग्लादेश (8.1%) भूटान (7.8%)
- हालांकि मुख्य नदी भूटान से नहीं गुजरती है लेकिन इसका बेसिन भूटान के 96% क्षेत्रफल पर फैला है।
- भारत में ब्रह्मपुत्र नदी की लंबाई 916 किलोमीटर तथा जलग्रहण क्षेत्र 194413 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 5.9% है।
- नदी का मुख्य प्रवाह केवल अरुणाचल प्रदेश और असम राज्यों से होकर गुजरता है, लेकिन इसका जल ग्रहण क्षेत्र कई अन्य राज्यों में भी फैला है जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय, नगालैंड और सिक्किम प्रमुख है।
नोट- इस लेख में ब्रह्मपुत्र नदी से संबंधित आँकड़े (जैसे लंबाई, प्रवाह क्षेत्र आदि) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा प्रकाशित River Basin Atlas से लिए गए हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम स्थल
- ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत में मानसरोवर झील के पास तथा कैलाश पर्वत श्रृंखला के दक्षिण में स्थित आंग्सी हिमनद (Angsi glacier) से होता है।
- इससे पहले पुरानी मान्यताओं के अनुसार चेमायुंगडुंग हिमनद को ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम स्थल माना जाता था। किंतु, हाल के भूगोल सर्वेक्षणों और उच्च रेजोल्यूशन उपग्रह चित्रों के विश्लेषण से यह तथ्य सामने आया है कि नदी का वास्तविक स्रोत आंग्सी हिमनद है, जो चेमायुंगडुंग के समीप स्थित है।
- तिब्बत में ग्रेट हिमालय और कैलाश पर्वत श्रृंखला के मध्य दो झील स्थित हैं— मानसरोवर झील और राकश (राक्षस) ताल।
- मानसरोवर झील मीठे पानी की झील है जबकि राकश ताल खारे पानी की झील है।
- भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि मानसरोवर झील के पास से तीन महान नदियों (सिंधु, सतलज और ब्रह्मपुत्र) का उद्गम होता है।
- सतलज नदी का उद्गम राकश ताल झील से होता है।
- सिंधु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के पश्चिम में कैलाश पर्वत श्रृंखला में स्थित बोखर-चू हिमनद से होता है।
- ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम मानसरोवर के पूर्व में कैलाश पर्वत श्रृंखला के दक्षिण में स्थित आंग्सी हिमनद (नवीनतम शोध) या चेमायुंगडुंग हिमनद (पुरानी मान्यता) से होता है।
- ब्रह्मपुत्र नदी को अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। तिब्बत में इसे यारलुंग सांग्पो या सांग्पों कहा जाता है।
- नामचा बरवा पर्वत के पास से हेयर पिन आकार में मोड लेने के पश्चात जब ब्रह्मपुत्र नदी अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है, तो उसे दिहांग कहा जाता है। आगे चलकर जब पासीघाट के पास लोहित और दिबांग नदियों के साथ संगम के पश्चात इसे ब्रह्मपुत्र कहा जाता है।
इन्हें भी पढ़ें:
ब्रह्मपुत्र नदी का विस्तृत मानचित्र (Brahmaputra River Map)

Download HD Brahmaputra River Map Download Brahmaputra River Map Pdf
यहां प्रस्तुत मानचित्र में ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सभी महत्वपूर्ण सहायक नदियों को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। इस मानचित्र की मदद से आप नदी के उद्गम से लेकर उसके मुहाने तक की यात्रा तथा विभिन्न क्षेत्रों में इसके प्रवाह को एक ही चित्र में समझ सकते हैं।
यह मानचित्र ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र की एक स्पष्ट और बेहतर समझ विकसित करने में आपकी मदद करेगा। दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके आप इस ब्रह्मपुत्र नदी के विस्तृत मानचित्र (Brahmaputra river map) को HD क्वालिटी में PDF और इमेज दोनों फॉर्मेट में डाउनलोड कर सकते हैं।
नोट- जब आप ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह मार्ग का अध्ययन कर रहे हो तो हमारे द्वारा प्रदान किया गया ब्रह्मपुत्र नदी का विस्तृत मानचित्र (Brahmaputra river map) भी अवश्य देखें। इससे आपको नदी के उद्गम से लेकर मुहाने तक के प्रवाह, इसकी सहायक नदियों और संगम स्थलों को समझने में और अधिक आसानी होगी।
ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह मार्ग
- आंग्सी हिमनद से निकालने के बाद ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय के समांतर पूर्व दिशा में बहती है। तिब्बत में इसे यारलुंग सांग्पो या सांग्पों कहां जाता है। सांग्पो का अर्थ होता है– ‘शुद्ध करने वाली’।
- तिब्बत के पठार पर लगभग 4000 मीटर की ऊंचाई पर बहने के बावजूद ब्रह्मपुत्र नदी ल्हासा के पास से 640 किलोमीटर तक नौकागम्य है।
- तिब्बत में लगभग 1625 किलोमीटर की यात्रा पूरी करने के पश्चात ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत के पूर्वी भाग में नामचा बरवा पर्वत के चारों ओर एक हेयर पिन के आकार का मोड़ लेती है। यहीं पर यह यारलुंग त्सांगपो ग्रैंड कैनियन का निर्माण करती है, जो दुनिया का सबसे गहरा कैनियन है। इसे अरुणाचल प्रदेश में दिहांग गॉर्ज कहा जाता है।
- भारत चीन सीमा पर मोंकू (अरुणाचल प्रदेश) के पास यह भारत में प्रवेश करती है और कोबो (अरुणाचल प्रदेश) तक लगभग 5 किलोमीटर अंतर्राष्ट्रीय सीमा बनाती है।
- भारत (अरुणाचल प्रदेश) में प्रवेश करने पर इसे “दिहांग” या “सियांग” नदी कहा जाता है। हालांकि और गहराई से देखे तो अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी भागों में इसे ‘सियांग’ और अरुणाचल प्रदेश के निचले भागों में इसे ‘दिहांग’ कहा जाता है।
- इसके बाद नदी लगभग 226 किलोमीटर तक भारत-चीन सीमा से पासीघाट तक प्रायः दक्षिण दिशा में बहती है। दिहांग नदी असम के मैदानों में कोबो के पास प्रवेश करती है जहां इसमें दो प्रमुख ट्रांस हिमालय सहायक नदियां दिबांग (उत्तर पूर्व से आने वाली) और लोहित (पूर्व से आने वाली) मिलती हैं।इन नदियों के संगम के बाद इस संयुक्त धारा को ब्रह्मपुत्र कहा जाता है।
- इसके आगे, ब्रह्मपुत्र नदी असम के डिब्रूगढ़ से होकर गुजरती है। डिब्रूगढ़ शहर से आगे, ब्रह्मपुत्र नदी पर बोगिबील ब्रिज बना है, जो असम के डिब्रूगढ़ जिले को धेमाजी जिले से जोड़ता है। यह भारत का सबसे लंबा रेल और रोड (rail-cum-road) ब्रिज है, जिसकी लंबाई 4.94 किलोमीटर है।
- इस पुल से थोड़ा और आगे, ब्रह्मपुत्र नदी में बाईं ओर से एक और सहायक नदी डिब्रूगढ़ के पास दिहिंगमुख नामक स्थान पर मिलती है, जिसे दिहिंग या बूढ़ी दिहिंग के नाम से जाना जाता है।
- इसके आगे, ब्रह्मपुत्र नदी में बाईं ओर से दो और नदियां आकर मिलती हैं — दिसांगमुख नामक स्थान पर दिसांग नदी, और उसके आगे दिखौमुख नामक स्थान पर दिखौ (दिखू) नदी ब्रह्मपुत्र में मिलती है।
- इसके आगे ब्रह्मपुत्र नदी दो धाराओं में विभाजित हो जाती है। दक्षिणी धारा को ब्रह्मपुत्र नदी ही कहा जाता है, जबकि उत्तरी धारा को खेरकुटिया सूती के नाम से जाना जाता है। इन्हीं दोनों धाराओं के बीच विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली स्थित है। उत्तरी धारा खेरकुटिया सूती में आगे चलकर सुबनसिरी नदी आकर लखीमपुर जिले में मिलती है। इसके बाद यह दोनों धाराएं पुनः एक हो जाती हैं।
- इसके उपरांत, नागालैंड से निकलकर आने वाली धनसिरी नदी बाईं ओर से ब्रह्मपुत्र नदी में धनसिरीमुख नामक स्थान पर मिलती है। इसके आगे, तेजपुर के समीप ब्रह्मपुत्र नदी में दाईं ओर से कामेंग नदी (जिसे जिया भराली नदी भी कहा जाता है) आकर मिलती है।
- इसके बाद कोपिलीमुख स्थान पर, मेघालय से निकलकर आने वाली कोपिली नदी बाईं ओर से ब्रह्मपुत्र में मिलती है।
- इसके पश्चात ब्रह्मपुत्र नदी गुवाहाटी पहुंचती है, जहां इसकी चौड़ाई सबसे कम हो जाती है। गुवाहाटी से सटे सरायघाट में ब्रह्मपुत्र पर एक रेल-सह-रोड पुल (Rail-cum-road Bridge) बना हुआ है। यह ब्रह्मपुत्र पर निर्मित पहला रेल-सह-रोड पुल है। जिसका उद्घाटन वर्ष 1962 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था।
- असम के बरपेटा जिला में भूटान से निकलकर आने वाली मानस नदी और बेकी नदी दाईं ओर से ब्रह्मपुत्र नदी में मिलती हैं। यह दोनों नदियां मानस राष्ट्रीय उद्यान से होकर बहती है।
- असम के धुबरी में भारत-बांग्लादेश सीमा के पास, भूटान से निकलकर आने वाली संकोश नदी दाईं ओर से ब्रह्मपुत्र नदी में मिलती है। इस नदी को असम के मैदानी प्रदेश में गंगाधर नदी नाम से भी जाना जाता है।
- इसके आगे ब्रह्मपुत्र नदी दक्षिण की ओर मुड़कर बांग्लादेश में प्रवेश करती है। बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन में, सिक्किम से निकालकर आने वाली तीस्ता नदी ब्रह्मपुत्र में मिलती है। इस संगम के बाद ब्रह्मपुत्र नदी को बांग्लादेश में जमुना नदी के नाम से जाना जाता है।
- आगे चलकर जमुना (ब्रह्मपुत्र नदी), गंगा नदी (जिसे बांग्लादेश में पद्मा कहा जाता है) से मिलती है। इन दोनों की संयुक्त धारा को आगे पद्मा नाम से जाना जाता है।
- इसके बाद पद्मा नदी चांदपुर के निकट मेघना नदी से मिलती है। पद्मा और मेघना के संगम के पश्चात संयुक्त धारा मेघना कहलाती है, जो अंततः बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इस प्रकार ब्रह्मपुत्र नदी मेघना के रूप में बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है।
ब्रह्मपुत्र नदी के विभिन्न क्षेत्र में नाम
ब्रह्मपुत्र नदी एक अंतरराष्ट्रीय नदी है, जो 3 देशों — तिब्बत (चीन), भारत और बांग्लादेश से होकर बहती है। विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। अब हम एक सारणी के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र नदी के इन अलग-अलग नामों पर चर्चा करेंगे।
क्षेत्र / स्थान | स्थानीय नाम | विवरण |
तिब्बत | यारलुंग सांग्पो | उद्गम से भारत में प्रवेश तक |
चीन | या-लू जांग-बू जियांग | चीनी भाषा (मैंडरिन) में ‘यारलुंग सांग्पो’ का उच्चारण ‘या-लू जांग-बू जियांग, जहाँ “जियांग” का अर्थ है “नदी” |
अरुणाचल प्रदेश | सियांग | अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी भागों में |
अरुणाचल प्रदेश | दिहांग | अरुणाचल प्रदेश के निचले भागों में |
असम | ब्रह्मपुत्र | दिबांग और लोहित नदियों के साथ संगम के बाद इस संयुक्त धारा को |
बांग्लादेश | जमुना | तीस्ता नदी के साथ संगम के पश्चात |
बांग्लादेश | पद्मा | ब्रह्मपुत्र (जमुना) और गंगा (पद्मा) के संगम के पश्चात संयुक्त धारा को |
बांग्लादेश | मेघना | पद्मा और मेघना नदियों के संगम के पश्चात संयुक्त धारा को |
ब्रह्मपुत्र नदी: मार्ग परिवर्तन और द्वीपों का निर्माण
ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय और तिब्बत के पठार के ऊंचे क्षेत्रों से निकालकर भारत में आती है। तीव्र ढलनों और तेज प्रवाह के कारण यह नदी अपने साथ भारी मात्रा में अवसाद जैसे- सिल्ट, बालू और कंकड़ पत्थर बहाकर लाती है। खासकर बरसात के मौसम में यह नदी बहुत ही अधिक मात्रा में अवसाद लेकर आती है।
जब यह नदी पर्वतीय क्षेत्रों की यात्रा पूरी करके असम के मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है तो इसकी भौगोलिक स्थिति में एकदम बड़ा परिवर्तन आता है। मैदानी क्षेत्र में भूमि का ढाल अचानक कम हो जाता है, जिसके कारण नदी के प्रवाह का वेग धीमा पड़ जाता है।
पानी का वेग कम होते ही नदी की अवसाद ढोने की क्षमता घट जाती है। परिणामस्वरुप, यह अपने साथ लाए भारी कणों को अपने तल में ही जमा करना शुरू कर देती है। इस प्रक्रिया को अवसाद निक्षेपण कहा जाता है। इसी अवसाद जमाव के कारण ब्रह्मपुत्र की संरचना में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं विकसित होती हैं –
- नदी तल का ऊंचा होना: लगातार अवसाद जमा होने से नदी का तल ऊपर उठ जाता है जिससे पानी किनारो की ओर फैलने लगता है। इसी कारण असम में ब्रह्मपुत्र नदी की अधिकतम चौड़ाई लगभग 18 किलोमीटर तक दर्ज की गई है।
- गुंफित नदी प्रणाली (Braided River Pattern): नदी तल के ऊंचा होने पर नदी एक मुख्य धारा में बहने के बजाय कई छोटी-छोटी समानांतर धाराओं में बट जाती है। यह गुंथी हुई चोटी जैसा प्रतीत होता है, इसलिए इसे ‘गुंफित नदी’ कहते हैं।
- नदी द्वीपों का निर्माण: धाराओं के बीच जब किसी स्थान पर अत्यधिक मात्रा में अवसाद जमा हो जाता है, तो वह धीरे-धीरे एक स्थाई भू-भाग का रूप ले लेता है। इन्हें नदी द्वीप कहा जाता है। विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप ‘माजुली’ इसी प्रक्रिया का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- मार्ग परिवर्तन: अवसाद के जमाव और तल के ऊंचा होने के कारण नदी अक्सर अपना पुराना रास्ता छोड़कर एक नया मार्ग बना लेती है, जिससे बाढ़ जैसी स्थितियां भी उत्पन्न होती हैं।
माजुली नदी द्वीप
- माजुली ब्रह्मपुत्र नदी पर असम राज्य में स्थित विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है। यह द्वीप दक्षिण में ब्रह्मपुत्र नदी और उत्तर में खेरकुटिया सूती (ब्रह्मपुत्र की एक शाखा) तथा सुबनसिरी नदी के मिलन से बनता है।
- माजुली द्वीप का निर्माण ब्रह्मपुत्र नदी और इसकी सहायक नदियों, विशेष रूप से लोहित नदी के मार्ग परिवर्तन के कारण हुआ था।
- सन् 1950 से पहले मंजुली द्वीप का क्षेत्रफल लगभग 1250 वर्ग किलोमीटर था। 2016 में जब इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया उस समय इसका क्षेत्रफल घटकर लगभग 880 वर्ग किलोमीटर रह गया था।
- वर्तमान समय में ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों द्वारा लगातार हो रहे कटाव के कारण इसका क्षेत्रफल घटकर 483 वर्ग किलोमीटर ही बचा है।
- 8 सितंबर 2016 को असम सरकार ने माजुली को भारत का पहला नदी द्वीप जिला घोषित किया।
- निचे दिया गया मानचित्र माजुली द्वीप का सटीक स्थान दर्शाता है।
ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदियां
ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदियों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- बाईं ओर की सहायक नदियां – ये नदियां ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी तट से मिलते हैं।
- दाईं ओर की सहायक नदियां – ये नदियां ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट से मिलते हैं।
नीचे इनका विस्तृत विवरण दिया गया है —
ब्रह्मपुत्र की बाईं ओर की सहायक नदियां
- दिबांग
- लोहित
- बूढ़ी दिहिंग
- दिसांग
- दिखू
- धनसिरी
- कोपिली
- कुलसी
दिबांग नदी
- दिबांग नदी का उद्गम अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी दिबांग घाटी जिले में भारत तिब्बत सीमा के पास स्थित केया दर्रे के समीप होता है।
- यह नदी अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी दिबांग घाटी और निचली दिबांग घाटी जिलों में बहती है और निजामघाट के पास मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है, कई धाराओं में बट जाती है।
- डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क के उत्तर में और सदिया के पास यह लोहित नदी में मिल जाती है।
लोहित नदी
- लोहित नदी ब्रह्मपुत्र की बाएं तट की एक सहायक नदी है। लोहित नदी का उद्गम पूर्वी तिब्बत के जमाव छू पर्वत श्रेणी से होता है। इसके बाद यह नदी अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है और मिशमी पहाड़ियों से होकर गुजरती है।
- लोहित नदी एक तेज, अशांत और तीव्रधारा वाली नदी है, जो अपनी उग्र धारा और वेग के लिए प्रसिद्ध है। इसे ‘खून की नदी’ भी कहा जाता है। यह नाम इसे इसलिए मिला क्योंकि इसके पानी में बहकर आने वाली लाल रंग की मिट्टी के कारण नदी का रंग कई स्थानों पर लालिमा लिए होता है।
- यह नदी तिब्बत, अरुणाचल प्रदेश और असम में बहती है। जब यह नदी असम के मैदानी भागों में प्रवेश करती है तो वेग कम होने के कारण यह कई धाराओं में बट जाती है। असम के कोबो नामक स्थान पर यह ब्रह्मपुत्र से मिलती है।
- इस क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र, दिबांग और लोहित – यह तीनों नदियां पहाड़ों से मैदानी इलाकों में प्रवेश करती हैं, जिसके कारण यह अनेक शाखाओ में विभाजित हो जाती हैं। इस प्रक्रिया से यहां एक उल्टे डेल्टा जैसी आकृति बनती है और आपस में जुड़ी हुई धाराएं देखने को मिलती हैं।
- इन्हीं नदियों के संगम क्षेत्र में चारों ओर से जल धाराओं से घिरा हुआ डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान स्थित है।
- नोआ दिहिंग, लोहित नदी की प्रमुख सहायक नदी है। इन दोनों नदियों के संगम स्थल से थोड़ा आंगे लोहित नदी पर भूपेन हजारिका सेतु का निर्माण किया गया है।
भूपेन हजारिका सेतु
भूपेन हजारिका सेतु जिसे ढोला-सादिया पुल के नाम से भी जाना जाता है, असम के तिनसुकिया जिले में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदी लोहित पर स्थित है। यह पुल असम के तिनसुकिया जिले के दो कस्बों ढोला-सादिया को जोड़ता है।
सादिया, असम के उत्तरी-पूर्वी छोर पर स्थित है और यहां से अरुणाचल प्रदेश की सीमा कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है, इसलिए यह पुल सीधे तौर पर अरुणाचल प्रदेश तक सड़क संपर्क प्रदान करता है। इस पुल के बन जाने से उतरी असम और पूर्वी अरुणाचल प्रदेश के बीच तेज और स्थाई यातायात संभव हो गया है।
भूपेन हजारिका सेतु भारत का सबसे बड़ा नदी पुल है, जिसकी लंबाई 9.15 किलोमीटर है। हालांकि भारत में पानी पर बना सबसे लंबा पुल अटल सेतु है, जो मुंबई को नवी मुंबई से जोड़ता है। इसकी लंबाई 21.8 किलोमीटर है। पर यह समुद्र के ऊपर बना है इसलिए सबसे लंबा नदी पुल भूपेन हजारीका ही है।
बूढ़ी दिहिंग नदी
- दिहिंग / बूढ़ी दिहिंग नदी ब्रह्मपुत्र की बाईं और की एक प्रमुख सहायक नदी है। इसका निर्माण नामफुक और नामचिक नदियों के संगम से होता है, जो पटकाई बुम पर्वत श्रेणी से निकलती है।
- अरुणाचल प्रदेश के चाॅंगलाॅंग , असम के तिनसुकिया और डिब्रुगढ़ जिलों से होकर बहती हुई दिहिंगमुख में ब्रह्मपुत्र नदी से मिलती है।
- इसकी कुल लंबाई 214.14 किलोमीटर है।
- दिहिंग नदी के प्रवाह क्षेत्र में कई गोखुर (ऑक्सबॉ) झीलें भी बनी हुई है।
दिसांग नदी
- दिसांग नदी का उद्गम अरुणाचल प्रदेश के लोंगडिंग जिले में पटकाई बुम पर्वत श्रेणी से होता है।
- अरुणाचल प्रदेश के बाद यह असम में प्रवेश करती है और दिसांगमुख के पास ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है।
- इस नदी की लंबाई लगभग 253 किलोमीटर है।
दिखू नदी
- दिखू नदी का उद्गम नागालैंड के जुन्हेबोटो जिले के नरूटो पहाड़ियों से होता है। यह नदी लगभग 160 किलोमीटर लंबी है।
- नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और असम में बहते हुए असम के दिखौमुख नामक स्थान पर ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है।
धनसिरी नदी
- धनसिरी नदी नागालैंड और असम में बहने वाली ब्रह्मपुत्र की बाईं और की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है। इसका उद्गम नागालैंड के लाइसांग चोटी से होता है और लगभग 352 किलोमीटर बहने के बाद यह असम के धनसिरीमुख में ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है।
- कुछ हिस्सों में यह नागालैंड और असम के बीच प्राकृतिक सीमा का निर्माण भी करती है।
- जैव विविधता की दृष्टि से यह नदी बहुत ही महत्वपूर्ण है। इंटांकी राष्ट्रीय उद्यान (नागालैंड) और धनसिरी आरक्षित वन (असम) इस नदी के किनारे स्थित है।
कोपिली नदी
- कोपिली नदी मेघालय और असम में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की बाईं ओर की एक सहायक नदी है। इसका उद्गम मेघालय पठार की पूर्वी जयन्तिया पहाड़ियों में साइपोंग रिजर्व फॉरेस्ट से होता है।
- यह मेघालय, उत्तरी कछार हिल्स और कार्बी आंगलोंग की सीमाओं से होकर गुजरती है और अंत में कोपिलीमुख में ब्रह्मपुत्र से मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई 256 किलोमीटर है।
कुलसी नदी
- कुलसी नदी मेघालय और असम राज्य में बहने वाली ब्रह्मपुत्र की एक प्रमुख सहायक नदी है।
- इसका उद्गम मेघालय की पश्चिमी खासी हिल्स क्षेत्र से होता है जहां इसे स्थानीय रूप से खिर नदी कहा जाता है।
- यह असम के नागरबेरा में ब्रह्मपुत्र से मिल जाती है।
ब्रह्मपुत्र की दाईं ओर की सहायक नदियां
- सियोल
- सुबनसिरी
- कामेंग (जिया भराली)
- पुठिमारी
- बेकी
- मानस
- संकोश (गंगाधर)
- सिंगीमारी
- तीस्ता
सुबनसिरी नदी
- सुबनसिरी नदी ब्रह्मपुत्र नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह एक ट्रांस हिमालयन नदी है जो तिब्बत के ल्हुंत्से जिले से चयुल छू (Chayul Chu) नमक नदी के रूप में निकलती है, भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम राज्यों में बहती हुई अंतत: असम के लखीमपुर जिले में ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई लगभग 518 किलोमीटर है।
- इसे स्वर्ण नदी (Gold River) भी कहा जाता है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से इसकी रेत में सोना पाया जाता था। इसीलिए इसका नाम सुबनसिरी पड़ा।
- सुबनसिरी नदी अपनी तेज धाराओं और तीव्र प्रवाह के लिए जानी जाती है। यही कारण है कि यह कायकिंग और रिवर राफ्टिंग जैसे रोमांचक खेलों के लिए एक बेहतरीन स्थान मानी जाती है।
- सुबनसिरी नदी पर लोअर सुबनसिरी जल विद्युत परियोजना का निर्माण असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर किया जा रहा है। इसकी उत्पादन क्षमता लगभग 2000 मेगावाट है, जो उत्तर-पूर्व (North-East) भारत की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है।
कामेंग नदी
- कामेंग नदी का उद्गम पूर्वी हिमालय में अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग जिले में गोरिचेन की पहाड़ियों के नीचे स्थित एक हिमनदिय झील से होता है। इसे जिया भराली नदी के नाम से भी जाना जाता है।
- अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग, बिचोम, पश्चिमी कामेंग और पक्के केसांग जिलों में बहती है तथा असम के सोनितपुर जिले में कोलिया भोमोरा सेतु के पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है।
- कामेंग नदी के पश्चिम में सेसा और ईगलनेस्ट अभयारण्य तथा पूर्व में पक्के टाइगर रिजर्व और नामेरी राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। नदी के पूर्व में डाफला पहाड़ियां स्थित है।
बेकी नदी
- बेकी नदी का उद्गम भूटान में हिमालयी ग्लेशियर से होता है। इसे भूटान में किरिस्सू नदी के नाम से जाना जाता है।
- भूटान से यह भारत के असम में प्रवेश करती है और असम के बारपेटा जिले में ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है। यह मानस राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरती है।
मानस नदी
- मानस नदी तिब्बत, भूटान और भारत में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की दाहिनी ओर की एक प्रमुख सहायक नदी है।
- इसका उद्गम तिब्बत में हिमालय की ऊँची पहाड़ियों से होता है। वहाँ से यह भूटान होते हुए भारत के असम राज्य में प्रवेश करती है।
- असम में यह नदी माथांगुरी के पास मैदानों में उतरती है और मानस राष्ट्रीय उद्यान से होकर बहती है।
- माथांगुरी के पास पहुँचने पर यह दो धाराओं में विभाजित हो जाती है—पूर्वी धारा को बेक़ी नदी तथा पश्चिमी धारा को मानस नदी कहा जाता है।
- अंततः मानस नदी असम के जोगीघोपा के पास ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है।
- मानस नदी दो प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों से होकर बहती है—भूटान में स्थित रॉयल मानस नेशनल पार्क और भारत के असम राज्य में स्थित मानस नेशनल पार्क।
संकोश (गंगाधर)
- संकोष नदी ब्रह्मपुत्र नदी की दाहिनी ओर की एक प्रमुख सहायक नदी है। इसका उद्गम उत्तरी भूटान में होता है।
- भारत में प्रवेश करने के बाद यह असम और पश्चिम बंगाल की सीमा के साथ बहती हुई आगे बढ़ती है और अंततः भारत-बांग्लादेश की सीमा के समीप ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है।
- इस नदी को संकोश, स्वर्णकोष, गदाधर, पुनात्सांग चू तथा गंगाधर आदि नामों से जाना जाता है।
- भूटान में इसे विशेष रूप से पुनात्सांग चू कहा जाता है। असम में रैदक (Raidak) नदी से संगम के पश्चात इसका नाम गंगाधर नदी हो जाता है।
तीस्ता नदी
- तीस्ता नदी भारत के सिक्किम और पश्चिम बंगाल राज्यों में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की दाईं और की एक सहायक नदी है।
- तीस्ता नदी का उद्गम उत्तरी सिक्किम में हिमालय में स्थित चोलमू झील से होता है। इस झील को त्सो ल्हामू झील भी कहा जाता है।
- यह लगभग 138 किलोमीटर तक संकरे पहाड़ी दर्रों में बहने के बाद, पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में सेवोके नामक स्थान पर मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है।
- यह बांग्लादेश के रंगपुर शहर के पास ब्रह्मपुत्र (जमुना) नदी से मिल जाती है।
- तीस्ता नदी सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन और पर्यटन के लिए अत्यंत उपयोगी है, लेकिन भारत–बांग्लादेश के बीच जल-बंटवारे के विवाद के कारण इसका राजनीतिक महत्व भी बहुत अधिक है।
मेघना और बराक नदी
- बराक नदी पूर्वोत्तर भारत की एक प्रमुख नदी है। बराक नदी की कुल लंबाई लगभग 900 किलोमीटर है। जिसमें से 524 किलोमीटर भारत में , 31 किलोमीटर भारत-बांग्लादेश की सीमा पर और बाकी बांग्लादेश में बहती है।
- इसका उद्गम मणिपुर राज्य में होता है। प्रारंभिक प्रवाह के दौरान यह कुछ दूरी तक मणिपुर और नागालैंड की सीमा बनाती है। आगे बढ़ते हुए यह मणिपुर और मिजोरम की सीमा तथा फिर मणिपुर और असम की सीमा भी निर्धारित करती है। इसके बाद नदी असम राज्य में प्रवेश कर जाती है।
- असम में बहने के बाद बराक नदी कुछ दूरी तक भारत और बांग्लादेश की सीमा निर्धारित करती है। सीमा क्षेत्र में पहुंचने पर यह नदी दो शाखों में बट जाती है। इसकी उत्तरी शाखा सुरमा नदी तथा दक्षिणी शाखा कुशियारा नदी कहलाती है।
- बाद में सुरमा और कुशियारा नदियां पुनः मिलकर मेघना नदी का निर्माण करती हैं। मेघना नदी आगे चलकर जमुना (ब्रह्मपुत्र की मुख्य धारा) और पद्मा (गंगा की धारा) के संगम से बनी पद्मा धारा से मिल जाती है। इसके बाद पद्मा और मेघना की संयुक्त धारा को पुनः मेघना नदी कहा जाता है। अंततः यही विशाल मेघना नदी बंगाल की खाड़ी में जाकर समाहित हो जाती है।
- इस प्रकार बराक नदी आगे चलकर सुरमा, कुशियारा और अंततः मेघना नदी का रूप ले लेती है। हालांकि भौगोलिक रूप से यह प्रणाली ब्रह्मपुत्र और गंगा (पद्मा) से संगम करती है, लेकिन बराक- मेघना को सीधे तौर पर ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी नहीं माना जाता। चूंकि बराक-मेघना प्रणाली अपना अधिकांश जल स्वयं एकत्रित करती है और अंत में पद्मा (गंगा-जमुना की संयुक्त धारा) से मिलती है, इसलिए इसे एक अलग नदी प्रणाली माना जाता है जो गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में मिलती है, न कि ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी।
ब्रह्मपुत्र नदी का आर्थिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक महत्व
ब्रह्मपुत्र एशिया की महानतम नदियों में से एक, केवल एक विशाल जलधारा नहीं है, बल्कि यह तिब्बत, भारत और बांग्लादेश के लाखों लोगों के लिए जीवन संस्कृति और अर्थव्यवस्था का आधार है। ब्रह्मपुत्र का आर्थिक महत्व कृषि, सिंचाई, मत्स्य पालन, परिवहन और जल विद्युत उत्पादन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है, वहीं सांस्कृतिक दृष्टि से यह नदी असमिया सभ्यता, लोक कथाओं और धार्मिक आस्थाओं की धुरी रही है। पर्यावरणीय दृष्टि से इसका विशाल बेसिन जैव-विविधता, वनों और पारिस्थितिकी तंत्र को सहारा देता है। साथ ही, इसकी अंतरराष्ट्रीय धारा इसे भारत, चीन और बांग्लादेश के बीच भू-राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बनती है।
(1) आर्थिक महत्व
कृषि और सिंचाई
- ब्रह्मपुत्र और इसकी सहायक नदियां उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी लाती हैं, जो असम और बांग्लादेश के मैदानी क्षेत्रों को दुनिया के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में शामिल करती हैं।
- असम का ब्रह्मपुत्र घाटी क्षेत्र भारत में चाय उत्पादन का प्रमुख केंद्र है। इस क्षेत्र में चावल और जूट की खेती भी की जाती है।
- नदी का पानी सिंचाई का मुख्य स्रोत है, जिससे साल भर खेती संभव हो पाती है।
जल विद्युत उत्पादन
- ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों का तीव्र प्रवाह, विशेष कर पहाड़ी क्षेत्रों में, जल विद्युत उत्पादन के लिए अपार संभावनाएं प्रदान करता है।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) द्वारा प्रकाशित ‘रिवर बेसिन एटलस’ के अनुसार, ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में प्रचुर जल विद्युत क्षमता निहित है। यह क्षेत्र देश की कुल जल विद्युत क्षमता का लगभग 41% हिस्सा अपने पास रखता है, जो इसे भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति में अत्यंत महत्वपूर्ण बनता है।
- भारत इस पर कई बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है या योजना बना रहा है। जैसे कि अरुणाचल प्रदेश और असम के बॉर्डर पर लोअर सुबनसिरी जल विद्युत परियोजना। 2000 मेगावाट उत्पादन क्षमता के साथ यह उत्तर-पूर्वी भारत की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है।
अंतर्देशीय जल परिवहन
- ब्रह्मपुत्र भारत के सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय जलमार्गों में से एक है। असम राज्य में सादिया से धुबरी तक, ब्रह्मपुत्र नदी के लगभग 991 किलोमीटर लंबे हिस्से को वर्ष 1988 में राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (National water way-2) के रूप में घोषित किया गया।
- यह भारी समान, चाय, कोयला और अन्य उत्पादों के परिवहन के लिए एक सस्ता और पर्यावरण अनुकूल साधन प्रदान करता है, जिससे पूर्वोत्तर भारत की कनेक्टिविटी बेहतर होती है।
पर्यटन
- ब्रह्मपुत्र नदी का प्राकृतिक सौंदर्य और इसके तटवर्ती क्षेत्र पर्यटकों के लिए अत्यंत आकर्षक हैं।
- नदी के किनारे स्थित काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और मानस राष्ट्रीय उद्यान दोनों ही यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जहां दुर्लभ गैंडा, बाघ, हाथी और अनेक प्रजातियों के पक्षी एवं वन्य जीव पाए जाते हैं।
- इसके अतिरिक्त ब्रह्मपुत्र के बीच बसा मंजुली द्वीप, जो विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है। अपनी सांस्कृतिक धरोहर और मनोहारी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है।
(2) सांस्कृतिक महत्व
ब्रह्मपुत्र केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक है।
- पौराणिक और धार्मिक आस्था: ब्रह्मपुत्र का अर्थ है “ब्रह्मा का पुत्र”। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसे एकमात्र पुरुष नदी माना जाता है। इसके किनारे कई प्राचीन मंदिर और तीर्थ स्थल स्थित हैं ,जैसे गुवाहाटी का कामाख्या मंदिर जो एक शक्तिपीठ है। लोग इस नदी को पवित्र मानते हैं और इसके तट पर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
- त्योहार और लोकगीत: असम की संस्कृति ब्रह्मपुत्र से गहराई से जुड़ी हुई है। बिहू जैसे त्योहारों और कई लोकगीतों और कथाओं में नदी का वर्णन मिलता है। यह नदी कलाकारों, कवियों और संगीतकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है, जिसमें भूपेन हजारिका जैसे महान गायक भी शामिल हैं जिन्होंने अपने गीतों में ब्रह्मपुत्र की महिमा का गान किया।
- माजुली द्वीप: माजुली द्वीप केवल एक भौगोलिक आश्चर्य नहीं है, बल्कि असम की नव-वैष्णव संस्कृति का केंद्र है। यहां कई सत्र (मठ) स्थित है जो सदियों से कला, संगीत, नृत्य और रंगमंच की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।
(3) पर्यावरणीय महत्व
- जैव विविधता का केंद्र: ब्रह्मपुत्र बेसिन दुनिया के सबसे समृद्ध जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में से एक है। इसके बाढ़ के मैदान, आर्द्रभूमियां और जंगल अनगिनत वनस्पतियों और जीवों को आश्रय देते हैं। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, जो एक सींग वाले गैंडे के लिए विश्व प्रसिद्ध है, और मानस राष्ट्रीय उद्यान दोनों ही ब्रह्मपुत्र के बाढ़ के मैदाने पर निर्भर हैं। यह नदी डॉल्फिन (गैंगेटिक डॉल्फिन) जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का भी घर है।
- बाढ़ और कटाव: ब्रह्मपुत्र नदी अपने दोहरे स्वरूप के लिए जानी जाती है। एक ओर यह उपजाऊ मिट्टी लाकर कृषि को सहारा देती है, वहीं दूसरी ओर मानसून के समय विनाशकारी बाढ़ का कारण बनती है। नदी अपने साथ भारी मात्रा में तलछट लाती है, जिसके कारण इसका तल ऊंचा उठता रहता है और नदी बार-बार अपना मार्ग बदलती रहती है। इसी प्रक्रिया से हर वर्ष बड़े पैमाने पर भूमि कटाव होता है, जिससे माजुली द्वीप जैसे भूभाग का अस्तित्व खतरे में है और लाखों लोग विस्थापित होते हैं।
(4) भू-राजनीतिक महत्व
ब्रह्मपुत्र एक ट्रांस-बाउंड्री (सीमा-पार) नदी है जो, इसे तीन देशों– चीन, भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग और संघर्ष दोनों का एक महत्वपूर्ण कारक बनती है।
- चीन का जल प्रबंधन: ब्रह्मपुत्र (यारलुंग सांग्पो) का बड़ा हिस्सा चीन नियंत्रित तिब्बत से होकर बहता है। चीन द्वारा इस नदी पर बनाए जा रहे बांध और जल विद्युत परियोजनाएं भारत और बांग्लादेश के लिए चिंता का विषय हैं। सबसे बड़ी चिंता यह है कि चीन इन बांधों का उपयोग पानी को मोड़ने या युद्ध जैसी स्थिति में एक हथियार के रूप में कर सकता है, जिससे निचले देशों में पानी का प्रवाह प्रभावित हो सकता है।
- भारत-बांग्लादेश जल बंटवारा: भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा नदी के जल बंटवारे को लेकर तो संधि है, लेकिन ब्रह्मपुत्र और तीस्ता जैसी अन्य साझा नदियों को लेकर कोई औपचारिक समझौता नहीं है। बांग्लादेश को चिंता है कि भारत द्वारा नदी पर बनाई जा रही परियोजनाएं शुष्क मौसम में उसके हिस्से के पानी को कम कर सकती हैं, जिससे उसकी कृषि और पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- डेटा साझाकरण का मुद्दा: बाढ़ की भविष्यवाणी और प्रबंधन के लिए नदी के प्रवाह से संबंधित डेटा का आदान-प्रदान महत्वपूर्ण है। चीन और भारत के बीच डेटा साझाकरण को लेकर समझौते हैं, लेकिन भू-राजनीतिक तनाव के समय इसमें रुकावटें आती रही हैं। प्रभावी बाढ़ प्रबंधन के लिए तीनों देशों के बीच पारदर्शी और निरंतर डेटा साझाकरण आवश्यक है।
स्रोत/संदर्भ:
इस लेख में ब्रह्मपुत्र नदी की लंबाई, बेसिन क्षेत्र तथा विभिन्न देशों में इसकी लंबाई संबंधी आँकड़े ISRO – River Basin Atlas (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) से लिए गए हैं।