सभी पाठकों को मेरा नमस्कार! आज की इस पोस्ट में हम चंबल नदी तंत्र पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इसमें हम चंबल नदी के उद्गम स्थल, प्रवाह क्षेत्र, प्रमुख सहायक नदियों और इस पर बने महत्वपूर्ण बांधों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करेंगे। साथ ही, एक मानचित्र के माध्यम से चंबल नदी के संपूर्ण तंत्र को समझने का प्रयास करेंगे, जिससे आपको इसके भौगोलिक और पर्यावरणीय महत्व की स्पष्ट समझ मिले। आइए, चंबल नदी की इस रोचक यात्रा को विस्तार से जानें।

चंबल नदी (Chambal River Map)
चंबल नदी यमुना नदी की सबसे बड़ी/ लंबी सहायक नदी है। यमुना नदी की सहायक नदी होने के कारण ही यह गंगा नदी प्रणाली का भाग है।
चंबल नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के मऊ गांव के समीप स्थित विंध्य पर्वत श्रृंखला की जानापाव पहाड़ी से होता है। उद्गम के पश्चात यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहते हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती है और इटावा जिले में यमुना नदी से मिल जाती है।
चंबल नदी की कुल लंबाई 1024 किलोमीटर है। यह मध्य प्रदेश के जानापाव पहाड़ी (इंदौर ज़िला) से उद्गमित होकर उत्तर दिशा में 376 किलोमीटर तक मध्य प्रदेश में बहती है। इसके बाद यह राजस्थान में प्रवेश करती है और उत्तर-पूर्व दिशा में 249 किलोमीटर तक प्रवाहित होती है।
इसके आगे चंबल नदी 216 किलोमीटर तक मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा बनाती है, फिर 150 किलोमीटर तक मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर बहती है। अंततः यह उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और 33 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद इटावा जिले में यमुना नदी में समाहित हो जाती है और गंगा नदी तंत्र का हिस्सा बन जाती है।
चंबल नदी एक सदाबहार नदी है, यानी यह पूरे वर्ष प्रवाहित होती है और कभी पूरी तरह नहीं सूखती। इसका जल प्रवाह मुख्य रूप से वर्षा जल और भूमिगत जल स्रोतों पर निर्भर करता है। हालाँकि, गर्मियों के मौसम में पानी का स्तर काफ़ी कम हो सकता है, विशेष रूप से जब वर्षा कम होती है या पानी का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
चंबल नदी का प्रवाह क्षेत्र विंध्य पर्वत श्रृंखला और अरावली पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित है। चंबल नदी का प्रवाह क्षेत्र वृक्षाकर प्रवाह क्षेत्र है।
चंबल एक अध्यारोपित नदी है जो भारत में सर्वाधिक अवनालिका अपरदन करने के लिए जानी जाती है। यह उत्खादभूमि भूमि का निर्माण करती है जिसे बीहड़ (Bad land topography) कहा जाता है।
उत्खादभूमि वे स्थलाकृतियाँ होती हैं, जो नदी, हवा, हिमनद (ग्लेशियर), समुद्री लहरों या वर्षा जल द्वारा किए गए अपरदन के कारण बनती हैं। इनका निर्माण तब होता है जब कोई प्राकृतिक शक्ति मिट्टी, चट्टान, या अन्य सतही पदार्थों को हटा देती है, जिससे एक नया भू-आकृतिक रूप विकसित होता है।
चंबल नदी मध्य प्रदेश के इंदौर, धार, उज्जैन, रतलाम, नीमच, श्योपुर, मुरैना और भिंड जिलों से होकर बहती है।
राजस्थान में चंबल नदी चित्तौड़गढ़ जिले के चौरासीगढ़ नामक स्थान से प्रवेश करती है और राजस्थान के चित्तौड़गढ़, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर,करौली और धौलपुर जिलों से होकर बहती है।
चंबल नदी उत्तर प्रदेश के दो जिलों आगरा और इटावा से होकर बहती है।
चंबल नदी पर चार प्रमुख बांध बनाए गए हैं जिनका क्रम दक्षिण से उत्तर की ओर गांधी सागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध, जवाहर सागर बांध और कोटा बैराज है। इन बांधों को हम इसी पोस्ट में आगे विस्तार से देखेंगे।
राजस्थान में चंबल नदी पर ही चुलिया जलप्रपात स्थित है जो राजस्थान के चित्तौड़ जिले के रावतभाटा के पास स्थित है। यह जलप्रपात राणा प्रताप सागर बांध से थोड़ा आगे स्थित है।
रावतभाटा में ही चंबल नदी के किनारे रावतभाटा परमाणु संयंत्र स्थित है। जो भारत का एक प्रमुख परमाणु ऊर्जा केंद्र है। इसे राजस्थान परमाणु ऊर्जा स्टेशन भी कहा जाता है। यह भारत का दूसरा व्यावसायिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र है, जिसका पहला रिएक्टर 1973 में शुरू हुआ था। इसका संचालन न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) द्वारा किया जाता है।
चंबल नदी के उपनाम
(1) चर्मण्वती
यह चंबल नदी का प्राचीन और पौराणिक नाम है। महाभारत और अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख “चर्मण्वती” के रूप में मिलता है।
(2) डाकुओं की शरणस्थली
चंबल नदी के बीहड़ों में दशकों तक डाकुओं (बागी) का आतंक था, इसलिए इसे यह उपनाम दिया गया। फूलन देवी, मानसिंह, पान सिंह तोमर जैसे कुख्यात डाकुओं के कारण यह क्षेत्र चर्चित रहा है।
(3) बीहड़ों की नदी
चंबल नदी के किनारे गहरे और ऊबड़-खाबड़ बीहड़ (रैवाइन) बने हुए हैं, जो इसे अन्य नदियों से अलग बनाते हैं। ये बीहड़ भूमि के कटाव और जल प्रवाह के कारण बने हैं।
(4) मगरमच्छों और घड़ियालों की शरणस्थली
यह नदी घड़ियालों, मगरमच्छों और गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ स्थित राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य दुर्लभ जीवों के लिए संरक्षित क्षेत्र है।
(5) राजस्थान की कामधेनु
चंबल नदी को राजस्थान की कामधेनु इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह नदी प्रदेश के लिए कई प्रकार से लाभकारी है, ठीक वैसे ही जैसे पौराणिक मान्यताओं में कामधेनु गाय को सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली माना जाता है।
राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य भारत का एक महत्वपूर्ण वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र है, जो मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों में फैला हुआ है। यह चंबल नदी के किनारे स्थित है और दुर्लभ जलीय जीवों तथा पक्षियों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।
यह अभयारण्य चंबल नदी के 435 किमी लंबे क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें मध्य प्रदेश (320 किमी), राजस्थान (130 किमी) और उत्तर प्रदेश (20 किमी) के हिस्से शामिल हैं। यह तीनों राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से प्रबंधित किया जाता है।
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य कई दुर्लभ और संकटग्रस्त जीवों का प्राकृतिक आवास है। जिनमें से घड़ियाल, मगरमच्छ, गंगाडॉल्फिन, सॉफ्ट शेल्ड कछुए और कुछ पक्षियों की प्रजातियां प्रमुख है।
चंबल नदी की सहायक नदियां-
चंबल नदी की सहायक नदियां इस प्रकार है-
दाएं तट की सहायक नदियां- क्षिप्रा नदी, छोटी काली सिंध, काली सिंध, पार्वती नदी, सिप नदी, कुनो नदी आदि।
बाएं तट की सहायक नदियां- चामला नदी, शिवना नदी, रेतम नदी, गुन्जाली नदी, ब्राह्मनी नदी, मेज नदी, बनास नदी आदि।
क्षिप्रा नदी
- क्षिप्रा नदी मध्य प्रदेश के इंदौर जिले की काकरी बरडी पहाड़ियों से निकलती है और 196 किलोमीटर बहने के बाद मंदसौर में मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर चंबल नदी से मिल जाती है।
- क्षिप्रा नदी भारत के पवित्र नदियों में से एक है। क्षिप्रा नदी के किनारे ही उज्जैन में कुंभ का मेला लगता है और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाबलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है।
- कान्हा नदी और गंभीर नदी क्षिप्रा नदी की प्रमुख सहायक नदियां हैं। कान्हा नदी के किनारे ही मध्य प्रदेश का इंदौर शहर बसा हुआ है।
काली सिंध
- काली सिंध नदी मध्य प्रदेश के देवास जिले के बागली नामक स्थान के पास से विंध्य पर्वत की पहाड़ियों से निकलती है और उत्तर दिशा में बहते हुए राजस्थान के कोटा जिले के नोनेरा नामक स्थान पर चंबल नदी से मिल जाती है।
- काली सिंध नदी की कुल लंबाई 550 किलोमीटर है। यह नदी 405 किलोमीटर मध्य प्रदेश में और 145 किलोमीटर राजस्थान में बहती है।
- परवन नदी (नेवज नदी) और आहू नदी काली सिंध नदी की दो प्रमुख सहायक नदियां हैं।
- मध्य प्रदेश के राजगढ़ और आगर मालवा जिलों के मध्य काली सिंध नदी पर कुंडालिया बांध बनाया गया है जो की एक सिंचाई परियोजना है।
- काली सिंध नदी की सहायक नदी नेवज नदी पर मध्य प्रदेश के जिले राजगढ़ में मोहनपुरा बांध बनाया गया है जो की एक सिंचाई परियोजना है।
- काली सिंध नदी और आहू नदी के के संगम पर राजस्थान के झालावाड़ जिले में गागरोन का किला स्थित है।
- शेरगढ़ दुर्ग (कोषवर्धन दुर्ग) परवन नदी के बाएं तट पर राजस्थान के बारां जिले में स्थित है।
पार्वती नदी
- पार्वती नदी मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के सिद्दीकगंज ग्राम के पास से विन्ध्य पर्वत की पहाड़ियों से निकलती है।
- मध्य प्रदेश के सीहोर, राजगढ़ और गुना जिलों में बहने के पश्चात यह नदी कुछ दूरी तक मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा बनाती है और राजस्थान में प्रवेश कर जाती है।
- राजस्थान में पार्वती नदी बारां और कोटा जिले में बहती है। इसके बाद यह कुछ दूरी तक फिर से राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा बनाते हुए चंबल नदी में मिल जाती है।
- यह चंबल नदी से मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले और राजस्थान के कोटा और सवाई माधवपुर जिले की सीमा पर मिलती है। जैसा कि आप मैप में देख सकते हैं।
- चंबल नदी और पार्वती नदी के मिलन बिंदु पर राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल वन्य जीव विहार स्थित है।
कुनो नदी
- कुनो नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के गुना जिले में होता है। जहां से यह उत्तर दिशा में बहते हुए राजस्थान के बारां जिले में प्रवेश कर जाती है इसके बाद यह फिर से मध्य प्रदेश में प्रवेश करके शिवपुरी और श्योपुर जिलों में बहते हुए मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर मुरैना जिले में चंबल नदी से मिल जाती है।
- यह नदी कुनो राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरती है। यह राष्ट्रीय उद्यान हाल ही में अफ्रीकी चीतों के पुनर्वास कार्यक्रम के कारण चर्चा में रहा है।
बनास नदी
- बनास नदी भारत के राजस्थान राज्य में बहने वाली चंबल नदी की सबसे लंबी सहायक नदी है इसकी लंबाई लगभग 512 किलोमीटर है।
- बनास नदी का उद्गम अरावली पर्वत श्रृंखला की खमनेर पहाड़ियों से राजसमन्द जिले में स्थित ‘वेदों का मठ’ नामक शिव मंदिर से होता है जो की कुंभलगढ़ से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- बनास नदी पूरी तरह से राजस्थान में बहने वाली एक मरुस्थलीय नदी है।
- बनास नदी राजस्थान के राजसमन्द, चित्तौड़गढ़ भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक और सवाई माधोपुर जिलों में बहते हुए राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर चंबल नदी से मिल जाती है।
- यहीं पर दाएं और से सिप नदी आकर चंबल नदी से मिलती है जिससे त्रिवेणी संगम का निर्माण होता है। इस त्रिवेणी संगम को रामेश्वरम घाट के नाम से भी जाना जाता है।
- राजस्थान के टोंक जिले के देवली में बनास नदी पर बीसलपुर बांध बनाया गया है, जो की एक गुरुत्वीय बांध है। यह अजमेर संभाग का सबसे बड़ा बांध है।
- बेड़च, कोठारी, खारी, माशी, मोरेल आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं
मेज नदी
- मेज नदी चंबल नदी की बाएं तट की एक सहायक नदी है। यह नदी राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में मांडलगढ़ के पास से निकलती है और बूंदी जिले में बहते हुए कोटा जिले में चंबल नदी से मिल जाती है।
- वजन, कुरल, मंगाली, घोड़ा पछाड़ आदि मेज नदी की सहायक नदियां हैं।
ब्राह्मणी (बामनी) नदी
- ब्राह्मणी (बामनी) नदी चंबल नदी की बाएं तट की एक सहायक नदी है जो राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के हरिपुर गांव के निकट से निकलती है और भैंसरोड़गढ़ के पास चंबल नदी से मिल जाती है।
- चंबल नदी और ब्राह्मणी नदी के संगम पर भैंसरोड़गढ़ दुर्ग स्थित है।
चंबल नदी पर स्थित प्रमुख बांध
चंबल नदी पर चार प्रमुख बांध बनाए गए हैं जिनका क्रम दक्षिण से उत्तर की ओर इस प्रकार है- गांधी सागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध, जवाहर सागर बांध और कोटा बैराज
चंबल नदी विश्व की एकमात्र नदी है जिसके 100 किलोमीटर के दायरे में तीन बांध बनाए गए हैं जिनका नाम है राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर, कोटा बैराज बांध।
गांधी सागर बांध
गांधी सागर बांध चंबल नदी पर मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित एक गुरुत्वीय बांध है। यह चंबल नदी पर बना पहला और सबसे ऊंचा बांध है।
इस बांध की आधारशिला भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 7 मार्च 1954 को रखी थी। बांध के निचले हिस्से में 115 मेगावाट का जल विद्युत स्टेशन है जिसमें पांच 23-23 मेगावाट की उत्पादन इकाइयां है।
राणा प्रताप सागर बांध
राणा प्रताप सागर बांध चंबल नदी पर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा में स्थित एक गुरुत्वीय बांध है। यह चंबल नदी पर बना दूसरा प्रमुख बांध है और चंबल नदी परियोजना का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
राणा प्रताप सागर बांध की जल विद्युत उत्पादन क्षमता 172 मेगावाट (MW) है। इसमें चार टरबाइन यूनिट्स लगी हुई हैं। प्रत्येक टरबाइन की क्षमता 43 मेगावाट है।
राणा प्रताप सागर बांध के जलाशय का उपयोग रावतभाटा परमाणु संयंत्र के रिएक्टरों को ठंडा रखने के लिए किया जाता है।
जवाहर सागर बांध
जवाहर सागर बांध राजस्थान के कोटा जिले में चंबल नदी पर स्थित एक गुरुत्वीय बांध है। यह चंबल घाटी परियोजना का तीसरा प्रमुख बांध है और जल विद्युत उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है। इसके बाद कोटा बैराज आता है, जो चंबल घाटी परियोजना का अंतिम भाग है।
इसकी जल विद्युत उत्पादन क्षमता 99 मेगावाट है। इसमें तीन टरबाइन यूनिट्स हैं, प्रत्येक की 33 मेगावाट क्षमता है।
कोटा बैराज
कोटा बैराज चंबल नदी पर राजस्थान के कोटा जिले में स्थित चंबल नदी परियोजना का चौथा और अंतिम बांध है। जिसका मुख्य उद्देश्य सिंचाई और जल आपूर्ति है। इस बांध से द्वारा जल विद्युत का उत्पादन नहीं किया जाता है।
गांधी सागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध और जवाहर सागर बांध के द्वारा बिजली उत्पादन के पश्चात छोड़े गए जल को कोटा बैराज द्वारा नदी के बाएं और दाएं किनारो पर नहरों के माध्यम से राजस्थान और मध्य प्रदेश में सिंचाई के लिए मोड़ दिया जाता है।
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आपकी सराहना के लिए आभार !